Solipsism, एक फिलोसोफिकल थ्योरी है जिसके अनुसार कुछ भी पुख्ता नही सिवाय मोजुदगी के हमारे दिमाग के ।
मतलब जो कुछ भी हम अपने चारो तरह देख रहे है वह सब एक भृम मात्र है, किसी भी चीज़ का कोई वजूद है ही नही ।
आप कहेगे के यह क्या बकवास है ? मतलब हम एक पूरी दुनिया के बीचो बीच रहते है, हमारा परिवार है – माँ, बाप, भाई, बहिन, पत्नी, बच्चे, ये दौड़ती भगति दुनिया सब हमारी आखों के सामने। और सबसे बड़ी बात के हम इन सब को देख सकते है, महसूस कर सकते है । सच ना ? आप कहेगे हा ? पर ये थ्योरी कहती है ‘नही’ , ये भरम है, हमारे दिमाग द्वारा रचा एक भरम जाल ।
कन्फ्यूज़ ? ठीक है कुछ इस तरह सोच के देखते है, आप सपने देखते है, ठीक ना ? आप सपने सोते हुए देखते है, ठीक ? सपने है क्या ? एक दिमागी भरम । ठीक ना ? अब यह देखते है, क्यों सपनो में हम किसी को छु सकते है ? क्यों किसी को छूने का अहसास सपनो में हमे जिवंत लगता है ?, बल्कि उस समय हम सो रहे है । क्यों कुछ ही सपने हमे याद रहते है, सब क्यों नही ? अब ये बात भी सच है के सपने भी एक भरम ही तो है, तो वह जिवंत कैसे लगने लगते है ?
एक स्टडी के अनुसार LSD लिए हुआ व्यक्ति जो भी उस हल्लूसीनेशन में सोचता, देखता है, उसे सच मान बैठता है, उसके लिए वह एक जिवंत अहसास होता है । इसका असर समाप्त होने के बाद भी लोगो को वह सब सच लगा जो उन्होंने उस दौरान उस नशे में देखा, सोचा. हलाकि वह सब उनके दिमाग का भरम मात्र था ।
इस थ्योरी के अनुसार, हमारे चारो और जो भी है वह एक मायाजाल है, और ये हमारे दिमाग के द्वारा बनाया गया एक ताना बाना है ।
हमारा दिमाग हमसे खेल रहा है ।
अब क्या सोच रहे है आप ? चलिए सोते है, सपनो मैं आज एक दूसरी दुनिया हो कर आते है ।